Thursday, 20 November 2008

Khudi ko kar buland

ख़ुदी को कर बुलंद इतना......

बिग बॉस का घर तीन महीने से ज्यादा एक भूलभुलैया या कहिए मानवों का आरक्षित और संक्षिप्त अजायब घर रहा। 22 नवंबर को बिग बॉस इसका समापन कर देंगे। कल रात राहुल महाजन के चले जाने से एक करोड़ रूपए का इनाम जीतने वाले तीन मेहमान बचे हैं। उनमें कौन जीतेगा यह तो वक्त बताएगा। जुल्फ़ी ज्यादा सभ्य वक्त को पहचानने वाला और अक्लमंद इंसान है। आशू भी हो सकता उनमें वह ही पब्लिक है। बक़ौल राजा फ़ॉलोवर। नेता राहुल ही था उसने अंदर रहकर भी चमनो गुल का आनंद लिया। बिग बास ने उसे कृष्ण बनने का अवसर देकर उसके आनंद का श्रीगणेश कर दिया था। बाक़ी सबका मनोरंजन भी किया यह अलग बात है। सबको हैंडिल भी चाबुकदस्ती से किया। कभी हंसी मजाक से कभी पायल के साथ निरामिष रंगरेलियों और जलक्रीड़ा द्वारा। इसके बावजूद वह मुझे आरंभ से ही एक ढुलमुल और 'गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुना दास' लगा। हो सकता है यह उसका ऊपरी आवरण हो। आज यानी 19 नवंबर को एक चैनल में खबरों में कहा जा रहा था कि राहुल न जाता तो एक करोड़ क दावेदार वही होता। वह और जुल्फ़ी ही थे जो बिना किसी व्यवधान के अपनी पारी खेलते रहे। एक चुप रहकर संजीदगी के साथ दूसरा हँस बोल कर। अंतं में उस नस्ल का व्यक्ति अब जुल्फ़ी हीं बचा है। उसने अंतिम दौर में अपने बिगडे खेल को होशियारी से बचा लिया। उसे ही बिग बॉस ने अपना संकटमोचन बनाया। सबसे पहले उसने ही शुरूआत की उस रात हम लोंगों ने बहुत ब्लंडर की। राजा ने उस पर अपनी बातों से यह कहकर सीमेंट लगा दिया कि पता नहीं उस रात को क्या हो गया था, एक वक्त भूखे रह लेते तो मर नहीं जाते। हमने ऐसा कैसे कर दिया। आशू ने कहा घर में भी हम सादा खाना खाते हैं यहां भी खा सकते थे। राजा का कहना था कि राहुल तो अक्लमंद था वह अगर वह ज़रा भी रोकता तो सब रुक जाते। हालांकि राजा ही सबसे ज्यादा कह रहा था कि अब यहां नहीं रहना है। बिग बास, यहां न प्याज़ है न टमाटर सब्ज़ी कैसे बने। ज़ुल्फ़ी का कहना था कल से भूखे है। सिवाय राहुल के सब अपने किए पर शर्मिन्दा थे और घूम घूमकर क्षमा याचना कर रहे थे।
एक चैनल ने यह सवाल भी उठाया कि मोनिका का चला जाना राहुल की नाराज़गी का कारण था। यह संभव है कि अंतिम नोमिनेशन में किसी को न निकाला जाता तो शायद बात इतनी न बढ़ती। एक महिला में इतनी कुव्वत होती है कि वह सबको बांधे रख सकती है। मोनिका में यह सामर्थ्य थी। बिग बॉस ने शायद इतनी दूर तक न सोचा हो। हालांकि वे स्वयं एक गहरी समझ वाली महिला हैं। स्त्री की ताक़त को बेहतर जानती हैं। हो सकता है सब घर वालों में इसी बात को लेकर गुस्सा हो। बिग बासॅ सोचते हों दो चार रोज़ मर्दाने घरवालों को खाना पकाते हुए देखने का मज़ा लें। कहावत है महिलाएं एक दिन के लिए भी जाती हैं तो नई जगह को भी घर बना लेती हैं, आदमी भरे घर को भी भूत के डेरे में बदल देता है। यही यहां हुआ। लेकिन यह अलग बात है। असल बात राहुल और घर के बाक़ी सदस्यों के बीच समीकरण की है। राहुल का जो रूप 18 नवंबर को नज़र आया। उसने अपनी रसिक, रंगीली और ढुलमुल व्यक्ति की छवि पूरी तरह बदल दी। ऐसा मेटामॉर्फासिस कैसे हो गया? यह उसका मूल गुण है या अन्य घरवालों के बदल जाने की प्रतिक्रिया है? यह सवाल टेढ़ा है। जब प्रमोद महाजन, राहुल के पिताजी का स्वर्गवास हुआ था। इसी तरह की फ़र्मनेस तब भी देखी थी। उसमें ज़िम्मेदारी निहित थी। बाद में जो अन्य बातें सुनने को मिलीं उनसे उसकी इस छवि पर विपरीत असर पड़ा। बिग बॉस के घर में जो उसकी छवि सामने आई उससे वह भिन्न नहीं थी। सबकी सुनना, पायल और मोनिका के साथ रसपूर्ण और बचकाना व्यवहार करना। पायल का हर बार उसके नामिनेशन पर यह कहकर रोना कि वह सीधा सादा आदमी है उसे कहीं निकाल न दिया जाए। साथ में यह भी कहते जाना कि उसकी राहुल से मित्रता है कोई भावानात्मक रिश्ता नहीं। बाद में दोनों का एक दूसरे के प्रति अपना अपना रुख़ बदल लेना यह सब बचकानेपन का सबूत है। लेकिन अंतिम दिन वाले राहुल का पूरा चरित्र एकदम भिन्न था।
उसका ऐसा स्टैंड ले लेना उसके स्वाभाव का हिस्सा है या किन्हीं परिस्थितियों में अचानक परिवर्तित हो गया? उसने ही बिग बॉस के धर का, घर से बाहर जाने वाला दरवाज़ा अकेले तोड़ा। जो दूसरों से कपड़े धुलवाता था, बदन दबवाता था बिस्तर ठीक कराता था वह इतना आक्रमक कैसे हो गया? रसोई में शायद ही कभी एक रोटी बेली हो या सब्ज़ी काटी हो। वह एकदम महाबली कैसे बन गया? जबकि राजा आग का गोला बना रहता था। जुल्फ़ी लाल बुझक्कड़ था। दो बातें संभव हैं। एक, अपने साथियों के यू टर्न लिए जाने के कारण वह आहत हुआ हो। दूसरा, उसका यह तर्क कि वह नहीं चाहता था उसके बाकी तीन दोस्तों में से कोई नोमिनेट हो। उसने उस घटना की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली। बिग बॉस ने दो बार उन चारों से बात की। राहुल का कहना था बिग बास की भी ज़िम्मेदारी थी कि घर वालों की ज़रूरत का ध्यान रखे। उन्हें भी सॉरी कहना चाहिए। बिग बॉस चाहते थे कि अन्य सदस्यों की तरह वह भी सॉरी कहे। उन्होंने उसे याद दिलाया कि वह एक करोड़ के इनाम पर से अधिकार खो देगा। उसने कहा मुझे इसकी चिंता नहीं लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे मित्रों को नुकसान न हो। ज़िम्मेदारी मेरी है अत: मैंने जो किया वह उस समय वही सही था। इसलिए मै उसे गलत नहीं मानता। मैं अपनी मर्जी से बाहर जाने के लिए तैयार हूं। मेरे सामने एक सवाल है कि अगर राहूल सॉरी कह देता, जिसके लिए उस पर बिग बॉस से लेकर उसके साथियों का जोर पड रहा था तो क्या उसकी अपनी कोई पहचान बचती? यह क्या ज़रूरी था कि उसे ही एक करोड़ का इनाम मिलता? या केवल इतना ही होता कि राहुल भी लड़ा? एक करोड़ का लालच छोड़कर एक नैतिक स्टैंड लेना शायद अधिक लाभ का सौदा था। यह राहुल का राजनीतिक और नैतिक मिला जुला निर्णय था। अंतत: राजनीति में वह भी अपने पिता की हिंदूवादी पार्टी में जाएगा। एक सवाल और बिग बॉस ने व्यक्तिगत ईमानदारी और मित्र सहयोग की भावना से अधिक गलती करके माफी को वरीयता क्यों दी? क्या पूरा आयोजन परस्पर सहयोग को मज़बूत करने के लिए नहीं था? गलती चारों ने की थी दंड चारों को बराबर मिलना चाहिए था। नियमों के संयुक्त उलंघन की भरपाई एक व्यक्ति के ज़िम्मेदारी लेकर घर से बाहर हो जाने से कैसे हो सकती है? माफ़ी मांगने के मुक़ाबले नैतिक स्टैंड को कमतर करके देखना कहीं न कहीं सामंतवाद और गुलामी को महत्व देने की तरह है। राहुल यदि अंदर से इतना मज़बूत है कि वह मित्रों और सिध्दांत के लिए एक करोड़ का आकर्षण ठुकरा सकता है तथा अपने आत्म सम्मान यानी खुदी को बुलंद रख सकता है तो उसे राजनीति में जाने के बारे में भी सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए। वहां तो सबसे पहले आदमी की इस खूं को ही तोड़ा जाता है। गोविंदाचार्य जीते जागते उदाहारण हैं।

गिरिराज किशोर

3 comments:

BOLO TO SAHI... said...

big boss programme par behtarin comment pad kar acha laga.

गिरिराज किशोर said...

Thanks, such items encourage to think where as other serials make the mind dull

Unknown said...

rahul naitik roop se majboot insaan hai,personality judjement kabile tareeph hai.thanks