Sunday 5 April, 2009

लोहिया और साहित्य

23 मार्च 09 को डा. राममनोहर लोहिया की जन्म शताब्दी का आरंभ हुआ। दिल्ली के मावलंकर हॉल में उसकी शूरूआत खांटी लोहियावादी नेता और साथी जनेश्वर मिश्रा ने की। मुझे भी उसमें शिरकत करने के लिए बृजभूषण जी और आनन्द भाई ने बुलाया था। एक गोष्ठी की अध्यक्षता भी कराई। इलाहाबाद प्रवास के दौरान डा लोहिया से संपर्क हो गया था। जब 1962 में आ. चंद्रभानु गुप्ता जी ने चुनाव लड़ने के लिए कहा तो मैंने माफ़ मांग ली थी। जब मुझे अध्यक्षीय भाषण देने के लिए कहा गया तो लेखक होने के नाते मैंने साहित्यिक संस्मरण सुनाने का निश्चय किया। मैं जानता था कि वहां पर उपस्थित लोहियावादी शायद ही इस तरह की बातें सुनने न आए हों। लेकिन चंद घटनाएं सुनाई।
जब लोहिया जी अपने काफ़ले के साथ आते थे तो सबसे पहले उनकी नज़र काफ़ी हाउस का नज़ारा करती थीं। हम नए लेखक बैठे होते थे ज़रूर पूछते कुछ लिखते पढ.ते भी हो या नहीं। देश की उन्नित के साहित्य ज़रूरी है। वही देश की पहचान बनता है।
एक बार स्व विजयदेव नारायण साही ने बताया कि लोहिया जी ने निराला जी से मिलने की इच्छा प्रकट की। साही जी ने कहा कि उनके मूड पर निर्भर करता है वे कैसा व्यवहार करें। उल्टा सीधा कुछ कह दिया तो बर्दाश्त कर सकेंगे।
चलो देखते हैं। उम्र में बड़े ही होंगे। वे दोनों दोपहर बाद पहुंचे निराला जी सोकर उठे थे। उन्होंने जाते ही पूछा कहो साही कैसे आए।
साही जी ने कहा आप से लोहिया जी मिलना चाहते थे। उन्हें आपसे मिलाने लाया हूं। उन्होंने उनकी तरफ़ देखा। जवाहरलाल तो इलाहाबाद के होकर कभी नहीं मिले, आप कैसे आ गए। लगता है वे लोहिया जी को उनके बराबर रखते थे।
आप देश के बड़े कवि हैं आप से नहीं मिलेंगे तो किससे मिलेंगे। निराला जी ने लंबा सा हूं किया जैसे उनकी हां में हां मिला रहे हों। निराला जी ने अपने आप ही बड़बड़ाया जवारलालआते तो उन्हें भी चाय पिलाता। उनके पास लुटिया थी बाल्टी में से पानी भरकर अंगीठी पर रख दिया। और पूछा –तुम भी कविता लिखते हो?
जी नहीं पढ़ता हूं?
क्या पढ़ा?
उन्होंने कहा आपकी राम की शक्तिपूजा। उन्होंने लंबा सा हूं किया। लोहिया जी बोले उसने मुझे प्रेरणा दी है। तब तक चाय बन गई थी।
मैं सोचता हूं कि क्या आज शायद ही ऐसा कोई राजनेता होगा जिसने राम की शक्ति पूजा पढ़ी हो प्रेरणा लेना तो दूर की बात है। चाय पीकर जब लोहिया जी निकले तो निराला जी बुदबुदा रहे थे फिर आना।

कई बातें लोहिया जी के संदर्भ में ध्यान आती हैं मुझे अंग्रज़ी हटाओ आंदोलन में जनेश्वर जी के साथ काम करने का अवसर मिला था। इस कार्यक्रम के अगले दिन मैंने सब हिंदी और अंग्रेज़ी अखबार देखे। इतने बड़े व्यक्ति के जन्म शताब्दी के आरंभ के बारे में अखबारों ने क्या रपट छापी। अंग्रेज़ी का तो उन्होंने विरोध किया था। उन्होंने रपट नहीं छापी तो बात समझ में आती है लेकिन मेरे लिए आश्चर्य की बात थी कि जनसत्ता को छोड़कर किसी भी हिंदी अखबार ने उस कार्यक्रम का नोटिस नहीं लिया था।अगर गांधी और लोहिया न होते तो इन हिंदी अखबारों का पता नहीं क्या स्थिति हुई होती।

5 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

श्रद्धेय,संदेह है, कि अधिसंख्य लोगों को ये जानकारी भी होगी, कि लोहिया जन्मशताब्दी मनाई जा रही है.आप के पास बेशकीमती संस्मरणों का खजाना है,हमें लाभान्वित करते रहें.छोटे मुंह बडी बात; शब्द-पुष्टिकरण क्यों नहीं हटा देते आप? यदि उचित समझे तो.... सादर..

अभिषेक मिश्र said...

नए और युवा साहित्यकारों तथा स्थापित रचनाकारों के प्रति भी लोहिया जी के विचार जान अच्छा लगा.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

"देश की उन्नित के साहित्य ज़रूरी है। वही देश की पहचान बनता है।"
आज कितने नेता हैं जो ऐसा सोचते है। आज तो हालत यह है कि ‘आप लाइब्ररी में वक्त ज़ाया करने के बजाय जिम क्यों नहीं चले जाते’ कहने वाले कई नेता मिलेंगे:)

Bahadur Patel said...

sir,
abhibhut hoon aapaki yah post padhakar. lohiya ji bhi bade vyaktitv the. aur nirala ji ki bat to nirali hi hai.
aajkal ke netaon ko dekhakar yah sab kitana kalpnik lagata hai.
abhi taza mamala hi dekhiye , jinhen ham jimmedar samajhate the unhone hi mahashveta devi jaisi badi rachanakar ko sabha nahin karane di.
medha patkar ke saath hbi vahi saluk kiya gaya.
ab hamare netaon aur sanghathanon ke paas apane khilaf sach sunane ki ya atmavlokan ki taqat nahi rahi hai.
aur isi ke parinam ab hamare samane bahut buri tarah se aa rahe hain.
bahut achchha likha hai aapane.
aapako sadhuwaad.

watchdog said...

आदरणीय
चाहे वो लोहिया जी हों या जयप्रकाश नारायण, उनके जो भी तथाकथित भक्त अनुयायी रहे हैं उनके नाम को कैश कराने में ही लगे रहे। मुलायम से ले कर लालू तक! न जाने कितने नाम हैं जिन्होंने इन महापुरुषों के नाम से राजनीति शुरू की और जाति में उसकी परिणति ढूंढी। आज के हिन्दी साहित्यकारों को तो इन श्रद्धेयों से एक चिढ़ सी है ऐसा लगता है। आपने जिक्र किया कि लोहिया जी ने निराला कि राम की शक्ति पूजा से प्रेरणा ली। अब ये बात कहीं हंस या कथादेश जैसी पत्रिकाओं में उठे तो उन्हें बाकायदा सांप्रदायिक घोषित कर दिया जाएगा। कभी इस प्रवृत्ति पर भी कुछ कलम चलायें।
एक बात। पिछली कई ब्लॉग प्रविष्टियों में कई लोगों ने अपने कमेंट्स में आपसे अनुरोध किया है कि वर्ड वेरिफिकेशन समाप्त करें। मुझे लगता है कि ये सावधानी वेबसाइट कि तरफ़ से है न कि आप द्बारा रखी गई है। इसका प्रयोजन मात्र यह है कि ब्लागस्पाट के वास्तविक यूज़र्स ही कमेंट्स लिखे न कि कोई ऑटोमेटिक सोफ्टवेयर या "Bot" इस्तेमाल करके ब्लॉग को स्पैम से भर दे। तो थोडी असुविधा तो होगी ही।