Tuesday, 2 December 2008

अरदास
2 दिसंबर 08

मैं 1979 से स्वाध्याय और ध्यान से पूर्व कानपुर में रहते आठ दस लाइन लिखकर 'उसे' समर्पित कर रहा हूं। वह ज़माना आई आई टी के साथ संघर्ष का था। तब आप बीती अधिक होती थी। अब जैसा भाव आए उसे उसी तरह उतार देता हूं। मैं नहीं चाहता कि जब कभी मिलूं तो 'वह यह कह सके कि 'अरे तू ऐसा सोचता था, या इतना खुश या दुखी था, तूने मुझे बताया ही नहीं।' लिखता हूं जिससे रसीद तो रहे। तब हो सकता है उससे यहीं कहते बने इतनी अरदास आती हैं क्या करूं। पर मेरी तो लिखित थी कभी तो नज़र आशनाई करते। हालांकि मैं नहीं जानता 'वह' कौन है कहां है। वह सुनता है या केवल देखता है या कुछ भी नहीं करता। केवल तरंगों से ही काम चलाता है। या सब मेरे अपने दिमाग़ का सिर्फ़ फ़ितूर है? जो भी हो पर है। मैं अपनी तरफ़ से उसे लिख पढ़ कर बांधे रखना चाहता हूं। पर कहते है वह बंधता नहीं, उसे बांधा ही नहीं जा सकता। लेकिन सुना है इश्क उसे बांध लेता है। पर आम इंसान इश्क की उतनी मोटी रस्सी बट नहीं पाता। जन्म लग जाएं तो भी मुश्किल होता है। इसी लिए लिखता हूं। क़यामत के रोज कह सकूं 'तुझे ग़ैरों से कब फ़ुर्सत, हम अपने गम से कब ख़ाली, बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली।' उलट भी हो सकता है। मैं दो चार बंदिशें पेश करदूं जिससे वक्त आने पर आपसे भी पूछ सकूं कि मैं झूठ बोल्यां? मैं जानता हूं कई बार पुख्ता से पुख्ता गवाह भी पलट जाते हैं। कितना भी बापर्दा रह ले, मैं जानता हूं तू नहीं पलटेगा। चुप्पी भले ही साध ले। पेश ए ख़िदमत है-
23 11 08
अब तो हम कहीं नहीं, जहां हैं वह स्थान भी धीरे धीरे बेगाना होता जा रहा है। जिस स्थान को अपना बनाना चाहता हूं वह बहुत बहुत दूर है। उसे देखा भी नहीं। शायद देख भी नहीं सकते। हालांकि यहां के बाद वही मंज़िल है। लेकिन कौन कह सकता है पहुंचेगे भी या नहीं। कई बार सीढ़ियां इतनी चिकनी और खड़ी होती हैं कि पता नहीं चलता कब पांव फिसल जाए और फिर उसी खड्ड में जा गिरें जहां से निकलकर इन सीढ़ियों तक पहुंचे थे, उन सीढ़ियों तक फिर से पहुंचनें में उतना या उससे ज्यादा समय लग जाए। फिर महारनी शुरू करनी होगी। एक ही संभावना है अगर तुमने मेरी अंधी लकड़ पकड़ ली तो हो सकता है मैं ही मंज़िल बन जाऊं।
24.' 11. 08


प्रभों, हम बच्चों को केवल फूलों की तरह न निहारकर उन्हें सींचकर ऐसा पुष्पवृक्ष बनाना चाहते हैं कि उस पर फल फूल हमेशा खिलें। महकें। राहगीर को छाया दें। भूखे को फल दें। लेकिन हम ऐसा नहीं करते। उन्हें दुखी करते हैं। उनकी भावनाओं और भाषा से खेलते हैं। उन्हें रुलाते हैं। प्रताड़ित करते हैं। उनमें अपने स्वार्थों के प्रतिबिंब देखते हैं और उन्हीं से उन्हें लाद देते हैं। गलत रास्ते पर डाल देते हैं। कैसे माता पिता हैं? कैसे शिक्षक और समाज सुधारक हैं। बच्चे ख़ुश नहीं तो जग केसे ख़ुश रहेगा। वे हमारे लिए कांटे बन जाएंगे हम उनके लिए बबूल।
28. 11. 08
संसार में कितने साधनहीन और असहाय लोग हैं। बस एकटक तेरी ओर देखते हैं। जैसे पपीहा स्वाति नक्षत्र की प्रतीक्षा में निर्जल रहकर पीऊ पीऊ की रट लगाए रहता है वे भी...। भले ही कवि की कल्पना हो पर इंसानों के बारे में सही है। बेसहारापन मनुष्य को पपीहे से बदतर कर देता है। मैं अपने ही संबंधों में कुछ को देखता हूं, बच्चे तक स्वाति नक्षत्र की प्रतीक्षा में आकाश की तरफ़ देखा करते हैं। कब बरसे कब उनके सपने पूरे हों। क्या उनके लिए स्वाति के आने को समय निर्धारित नहीं? तेरा यह कालचक्र कैसा है? कहीं साल में एक बार आता है कहीं आता ही नहीं।
2. 12 08
मंगल भवन अमंगलहारी, द्रवहू सो दशरथ अजिर बिहारी।
हम अमंगल को जीवित नहीं रहने देना चाहते। कैसी विडंबना है! दोनों एक दूसरे के कारक हैं। दषरथ के अजिर बिहारी से कह रहे हैं। अजिर में विचरण करने वाला किसी के अमगल को क्या समझेगा? कह रहे हैं हमारा अमंगल हर ले। यह ठीक है कि आस्था के स्तर पर वह सब जानता हो। वह क्या उनके दुख भी जानता है जो धरती पर चलते है? अगर वन बिहारी दषरथ पुत्र से कहते तो शायद हमारे दुखों को अच्छी तरह जानता। उनके प्रति संवेदनशील होता। अजिर बिहारी, राम होकर भी बच्चा है। वह अपने सुख दुख के बारे में ही अनजान है। हम उससे यह क्यों न कहें कि तुम हमारे दुख के साथी बनो। हम तुम्हरे दुख के साथी हैं। दुखों को बना रहने दो वे तुमसे अधिक सच्चे साथी हैं।

6 comments:

KK Yadav said...

......To ap bhi blog par hain, swagat hai !!!

Kavita Vachaknavee said...

प्रविष्टि पढ़ी नहीं जा रही।
इस प्रविष्टि की कोडिंग बिगड़ी हुई है,इसलिए यूनिकोड देवनागरी में पाठ्य नहीं है। सम्भवत: कृतिदेव आदि फ़ोंट में है,जो आपके पास संस्थापित होने से आपको ठीक ठीक दिख रहा होगा मात्र।

कन्वर्टर सम्बन्धी सभी प्रकार की सुविधा के लिए याहू समूह हिन्दीभारत
( http://groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/ )

ने १०-२० कन्वर्टर संस्थापित किए हुए हैं जो क्षण-भर में अनेक दुर्लभ फ़ॊंट्स की सामग्री को यूनिकोडित कर देते हैं। आप उचित समझें तो उस समूह से जुड़ सकते हैं।

गिरिराज किशोर said...

Dhanyavad

Bahadur Patel said...

sahi kaha apane.dhanyawad.

गिरिराज किशोर said...

Ab aap padhen, ab Suvidhajanak hoga

Anonymous said...

bahut khub, hamen or kya chahiye...... lagatar likhte rahiyega------
dularam saharan
105; gandhi nagar
churu-331001
rajasthan