Sunday, 1 March 2009

उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा हिंदी लेखकों का नुमायशी सम्मान

आज 28 फ़रवरी 09 है। अमर उजाला में आज ही डा केदारनाथ सिह जी का उत्तरप्रदेश के केबिनेट पर वरिष्ठता में जूनियर मंत्री जी के कर कमलों से भारत भारती सम्मान लेते हुए फोटो छपा है। केदार जी हमारी भाषा के सम्मानित कवि हैं। उन्हें नगर विकास मंत्री से भारत भारती सम्मान और अन्य सम्मानित लेखकों द्वारा सम्मान ग्रहण करते देखकर मन बासों उछल गया। लेकिन मंत्री जी को अन्य ज्यादा ज़रूरी कारणों से बीच में ही जाना पड़ा। कुछ हत्भागे लेखक मंत्री के कर कमलों से सम्मान लेने से वंचित रह गए। हमारे लेखक कितने महान हैं ऐसे नए नए मंत्रियों को भी अपनी इज़्जत की परवाह न करके मंत्रियों को महानता का तौक पहनाने में अपनी इज़्जत की चिंता नहीं करते। जब मैं अखबार पढ रहा था तो रविभूषण जी का फोन आया तो मैंने उन्हें इनकी महानता की कहानी सुनाई। वे एक आँख हंसे दूसरी आंख रोए। हंसे इसलिए कि हमने इज़्जत के इस वहम को ही सम्मान और अपने बीच से हटा दिया। कोई सम्मान दे क्या फर्क पड़ता है। रोए शायद इसिलए कि पहले यही सम्मान वे लोग देते थे जिनके नाम से सम्मान में चार चांद लग जाते थे। उनके नाम न ही लें तो लेने वालों के लिए भी अच्छा और देने वालों के लिए भी।
कुछ वर्ष पहले वरिष्ठ आलोचक वैय्याकरण किशोरीदास वाजपेयी को भारत भारती मिलना था। प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई को प्रदान करना था। जब उनका नाम पुकारा गया तो वाजपेयी जी उठे नहीं। मोरार जी भाई स्वयं उतर कर आए। सम्मान प्रदान किया। प्रणाम किया और लौट गए। पहले प्रधानमंत्री भारत भारती देने आते थे..फिर मुख्यमंत्री देने लगे। राष्ट्रपति शासन में मोतीलाल वोहरा राज्यपाल के रूप में मुख्यअतिथि थे। मुलायम सिंह ने शायद ही इस गौरव को हाथ से जाने दिया हो। उत्तर प्रदेश अकेला राज्य है जो पूरे देश के हिंदी लेखकों को सम्मानित करता है। अगर हम स्वयं इसका इस प्रकार हिंदी और उसके लखकों का अवमूल्यन करेंगे तो हिंदी की बात किस मूंह से करेंगे।
हमारे महान लेखको में तो विरोध की ताब बची नहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी
अगर इस नज़रिए से सोचना बंद कर दिया तो वेहतर यही है कि ड्राफ्ट भेज कर छुट्टी पा लें। सम्मान के वहम से तो छुट्टी मिले।

12 comments:

Kavita Vachaknavee said...

स्थिति शोचनीय। मूल्यांकन सही,सटीक,चिन्तनीय व विचारणीय।
शब्दावलीआयोग वाले डॊ.सत्यप्रकाश जी(वैज्ञानिक)ने भी इन्दिरा जी के हाथों सम्मान की घड़ी में उठना उचित नहीं समझा था। वे स्वयं मंच से उतर कर आई थीं।
मेरे विचार से इसके लिए उत्तरदायी मन्त्री या प्रशासन कम और हिन्दी के लेखक अधिक हैं। जिनके उदाहरण हम याद करते हैं, उनका व्यक्तित्व व चरित्र स्वयं में प्रणम्य उदाहरण होता था। मात्र लेखन द्वारा वे नामचीन न थे अपितु अपने निजी कारणों से भी महिमावान् थे।





एक निजी बात -
जन्म : 8 जुलाई, 19937
ब्लॊग पर आपकी इस जन्मतिथि के वर्ष में एक ९ अतिरिक्त है। सम्पादित कर लें।

Arvind Mishra said...

इसलिए आपकी साहित्यिक बिरादरी ही जिम्मेदार है गिरिराज जी ! काश वे आपकी पीडा को भी समझ पाते और आत्मान्न्वेषण करते !

विष्णु बैरागी said...

अनुचित का प्रतिकार यदि 'सास्‍चती पुत्र' ही नहीं करेंगे तो फिर किससे आशा, अपेक्षा की जाए?

निवदेन-एक बार फिर।
कृपया अपने ब्‍लाग से वर्उ वेरीफिकेशन की व्‍यवस्‍था हटा लें।
चाहें तो कमण्‍ट माडरेशन लगा दें।

विजय गौड़ said...

तुम्हारी तिजोरियां
पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं
जिनके भार से दबी जा रही हैं
तुम्हारी संवेदनायें

आलेख विचारणीय है। ऎसे सवाल पर गम्भीरता से और विस्तार से बात हो और सामूहिक तरह से सोचा और तय किया जाए तो शायद जाकर कोई स्थिति बने जब रचनाकार ऎसे मामलॊ पर पर कोई सकरात्मक रूख अपना पाएं वरना तो यह निजि नैतिकताओं का मामला ही हो जा रहा है और उसी के हिसाब से समय बे समय तर्क सुनने पढने को मिल जाते है। पुरस्कारों के सवाल पर भी पत्रिकाओं को एक बहस चलाते हुए विशेषांक निकालने चाहिए, जैसे अन्य विषयों पर निकलते हैं।

naveen kumar naithani said...

आदरणीय गिरिराजजी
अब समय आ गया है कि साहित्यिक समारोहों की गरिमा बचाये रखने के लिये लेखकों को ठोस पहल करनी चाहिये.एक व्यापक अभियान शुरु करना होगा.स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है.

गिरिराज किशोर said...

ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Maine UP Natak Academy ka Samman Lene se Inkar isliye kar diya tha char varsh tak ve likhjte rahe the ki PM denge . Antme maine mana kar diya. KI yey PM ko sammanit kARNA HAI YA Lekhak ko.

गिरिराज किशोर said...

ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Maine UP Natak Academy ka Samman Lene se Inkar isliye kar diya tha char varsh tak ve likhjte rahe the ki PM denge . Antme maine mana kar diya. KI yey PM ko sammanit kARNA HAI YA Lekhak ko.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कोई भी सम्मान हो, वह सम्मान लेने लायक होना चाहिए। यदि सम्मानपूर्वक यह नहीं मिल रहा है तो यह अपमान ही कहा जाएगा। क्या हमारे सम्मानित साहित्यकार बाजपेयीजी से सबक नहीं ले सकते जिन्होंने किसी नेता के सामने नतमस्तक होने की बजाय अपने ही स्थान पर बैठे रहे।!

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

मैं इस बात को दूसरी नज़र से देखता हूं. मंत्री, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, नया हो या पुराना, आखिर हमारा चुना हुआ प्रतिनिधि ही तो है. हमने तो उसे खलनायक मान लिया है, कि उसके हाथों पुरस्कार लेकर जैसे लेखक कोई पाप कर रहा है.यह ह्जो जो होलियर देन दाऊ रवैया है हमें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. बेशक केदारनाथ जी बड़े कवि हैं, लेकिन या तो उन्हें इनाम स्वीकार ही नहीं करना चाहिए था, और अगर स्वीकार कर लिया तो फिर इससे क्या फर्क़ पड़ता है कि उसे कौन दे रहा है?इनाम है तो सरकारा का ही और उसे दे भी सरकार का प्रतिनिधि रहा है.दिक्कत क्या है?

www.dakbabu.blogspot.com said...

गिरिराज जी! आपकी भावनाओं से सहमत हूँ.

watchdog said...

आदरणीय गिरिराज जी,
आपकी व्यथा बिलकुल जायज़ है. लेकिन देखिये अब हिंदी लेखकों को इतना पैसा तो लेखन से मिलता नहीं, तो वे सोचते हैं कि कुछ पुरस्कारों, डिग्रियों, तमगों आदि से ही अपने बैठक खाने को सजा लें. अब उम्र के तीसरे और चौथे क्वार्टर की ओर अग्रसर हिंदी के मध्य वर्गीय लेखको पर कुछ तो परिवार का भी दबाव रहता ही होगा कि सारी उम्र तो फाकाकशी में गुजरी, बीमार हो, बीवी बीमार है, बिटिया की शादी करनी है, या पोती का स्कूल में प्रवेश कराना है, तो सारी खुद्दारी अभी क्या दिखानी, तो ले लो जो भी मिल रहा है.

अनुनाद सिंह said...

मंत्री जी का इस प्रकार चले जाना निन्दनीय है। लेकिन हम ज्यादा दोषी हैं ; हमने ही तो अपने अधिकार का मजाकौड़ाते हुए उन्हें जिताया है।