जनता देश को बनाए नताओं पर न छोड़े
28 नवंबर 08
26 नवंबर 08 की रात 9.15 बज के लगभग रात मुंबई पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला एक भयावह घटना है। इससे पहले सबसे खतरनाक हमला संसद पर उस समय हआ था जब देश के अधिकतर सांसद सदन में थे। मुंबई जो किसी समय सबसे अधिक सुरक्षित था अब संभवत: सबसे ज्यादा असुरक्षित है। विचित्र बात है कि जैसे समुद्र के रास्ते से पहले समुद्र पार से विदेशी शत्रु आते थे उसी तरह समुद्र से मछली पकड़ने वाली चोरी की गई दो मछली पकड़ने वाली नावों से पोरबंदर से मुंबई गेट वे आफ़ इंडिया के रास्ते पाकिस्तानी आतंकवादी आए हैं। एक चैनल पर बताया जा रहा था 1993 में भी समुद्री रास्ते से आतकवादियों के आने की घटना घट चुकी है। दो सवाल उठते हैं-एक सवाल है कि पोरबंदर से मुंबई तक राफ्ट नावों से इतने हथियार बारूद, आर डी एक्स लेकर बेखौफ़ चलते चले आने का नोटिस न ता गुजरात सरकार ने लिया और न नेवी के तट रक्षकों ने और न इंटैलिजेंस ने। दूसरा सवाल है उनके आदमी पहले से ताज होटल में ठहरे थे तो केंद्र और राज्य सरकार की ख़ुफ़िया ने क्या किया? यानी कोई भी कहीं से आ सकता है और मनमानी करके आराम से लौट सकता है? इसकी सूचना पुलिस को मछुआरों द्वारा पहले दी जा गई थी। उन आतंकवादियो को रोकने की तैयारी राज्य सरकार के पास थी या नहीं यह कहना मुश्किल है। उन्हें नेवी और सेना से सहायता लेनी पड़ी। एन डी टी वी का कहना है कि कुल 26 आतंकवादी आकर सारी मुंबई मे फैल गए थे। कह नहीं सकते उनकी संख्या वास्तव में कितनी है। ग्यारह हमले किए गए थे। उनमें ताज महल होटल, नरीमन हाऊस, विक्टोरिया टर्मिनस और ओबेराय होटल अदि हैं। बड़े होटल निशाने पर क्यों थे? शायद इसलिए कि टूरिस्ट इस देश में न आएं।
यह स्पष्ट है कि उन लोगों की पहले से तैयारी थी। ये आतंकवादी इतना बारूद और हथियार कैसे और कहां से लाए कि वे 45 घंटे से नेशनल सिक्योरिटी कमांडो से लड़ रहें हैं। हमारे मीडिया या हुक्मरानों को यह पता नहीं चल सका कि अंदर कितने आतंकवादी है? जिस तरह अंधाधुंध गोलाबारी हो रही है उससे लगता है यह ख़बर उपलब्ध न होने के कारण वे कमांडोज़ पर भारी पड़ रहे हैं। कभी आतंकवादी किसी मंजिल पर होते हैं कभी किसी मंजिल पर। बंगला देश को आज़ाद कराने के समय पाकिस्तान की इतनी बड़ी सेना को चंद घंटों में समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया गया था। अब तक हम यह पता नहीं लगा पाए कि आतंकवादी किस मंज़िल पर कितनी संख्या में हैं। कब तक लड़ेंगे कहना मुश्किल है। हमारे कमांडोज़ अपने घर में हैं उनकी सप्लाई लाइन खुली है। जब कि विदेशी कमांडोज़ की अपनी हर तरह की सीमाएं हैं फिर भी वे लड़ पा रहे हैं। हमारी जल सेना ने दो जहाज अरब सागर में पकड़े हैं। मछली पकड़ने वाली दो नावों में से एक नाव भी पकड़ी है। कहा जाता है उसमें एक लाश थी। उन लोगों ने अपने सरगना को वहां से चलते समय हलाक कर दिया था। क्यों? इसकी तफ़सील तो बाद में पता चलेगी। ये दोनों जहाज़ कराची से आए थे। कहा जा रहा है कि इन जहाज़ों में ही पाकिस्तान से आतंकवादी, अपने लिए पर्याप्त भोजन पानी शराब आदि लाए थे। आर्मस एम्यूनीशन तो आया ही था। लंबी लड़ाई का इंतज़ाम था। पोरबंदर से सब कुछ नावों द्वारा मुंबई लाया गया था। विचित्र बात है कि बार बार कहा गया कि ताज में कोई बंधक नहीं रहा। अभी पता चला कि बॉलरूम में आतंकवादी और बंधक अभी भी है। उनके बीच गोलीबारी बार बार चालू हो जाती है उसी से पता चलता कि अभी वे लोग अपनी लडाई लड़ रहे हैं। मीडिया पर भी ग्रेनेड फेंके गए और फ़ायरिंग की गई। एक आदमी को चोट भी आई है। वे लोग ज़मीन पर लेटकर जान बचा रहे हैं और अपना काम कर रहे हैं। मीडिया बराबर कवरेज दे रहा है इस बात का आतंकियों को अंदाज़ है। लगता है यह मात्र आतंकवाद ही नहीं बल्कि यह आक्रमण है। इसे आप गुरीला लड़ाई जैसी वस्तु कह सकते है। कहीं यह किसी बड़ी लड़ाई की तैयारी तो नहीं?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों के साथ दौरे पर ओबेराय होटल पहुंचे। उससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री आकर कह गए कि उन्होंने एक साल पहले बताया था कि अरब सागर से देश पर हमला हो सकता है। वही हुआ। सवाल हैं कि ये मुख्यमंत्री लोग राजनीति क्यों कर रहे हैं। महाराष्ट्र में मनसा के आंतरिक आतंकवाद को वहां की सरकार रोक नहीं पाई यह तो बाहरी आक्रमण है। इस तरह के आंतरिक मतभेद बाहरी ताक़तों को निमंत्रण देते हैं। बी जे पी ने 28 ता. को एक विज्ञापन दिया कि आतंकवाद की चौतरफ़ा मार लगातार, सरकार कमज़ोर और लाचार। ख़ून का लाल धब्बा बैकग्राउंड में है। नीचे लिखा है कि बी जे पी को वोट दें। नादिरशाह और दूसरे आक्रमणकारी इसी तरह के निमत्रंण पर देश में आए थे। आज जब कमांडो अपनी जान जोखिम में डालकर लड़ रहें है, बंधक और उनके बच्चे तीन दिन से भूखे प्यासे है पर वे अपने लिए वोट मांग रहे हैं। यह शर्म नाक स्थिति है। क्या इस अमानवीय गैस्चर से प्रभावित होकर जनता ऐसे लोगों को वोट देगी? अभी नौसेना कमांडो ने बताया कि वे लोग ताज के बारे में सब कुछ जानते थे। उन्होंने अंदर की स्थिति का विवरण दिया कि अंदर लड़ना कितना कठिन था। वे सब रास्ते पहले से जानते थे। हमें विषम हालत में लड़ना पड़ रहा था। बाहर राजनीति हो रही थी। ओबेराय होटल से 1 बजे के क़रीब ख़बर आई है कि वहां बहुत ज्यादा ख़ूनखराबा हुआ है। ओबेराय के टिफ़िन रेस्ट्रां में कोई नहीं बचा। जो लोग खा रहे थे सब मार दिए गए। बच्चों तक को नहीं छोड़ा। सी एस टी में भी फ़ायरिंग की गई। सवाल है कि आतंक की लड़ाई कौन लड़ रहा है? क्या ये वोट के लालची? या कमांडो और बध्दिजीवी। जान का खतरा उठाकर हालत जनता के सामने पेश करने वाले पत्रकार और मीडिया। करकरे जैसे सिपाही और साथियों की हत्या के बारे में जांच ज़रूरी है कि उनको किसने और कैसे मारा? वे काफ़ी दिनों से लोगों की नज़र में थे। उनकी हत्या आरंभ में ही हो जाना कम चकित नहीं करता है। यह एक ऐसी चेतावनी है अगर इस बार नज़रअंदाज़ कर दिया गया तो फिर कोई पुरसाहाल नहीं। अब देश के लोगों को यह लड़ाई ख़ुद लड़नी पड़ेगी। नेताओं के फेर से बचना अब जरूरी है। उन्हें नेता ख़ुदा न बनाया। आपने बनाया है।
गिरिराज किशोर, 11/210 सूटरगंज कानपुर 208001
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Friday, 28 November 2008
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