tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post7993221855160112496..comments2023-09-10T06:32:54.439-07:00Comments on फिलहाल: साहित्य अकादमी की स्वायत्तता?गिरिराज किशोरhttp://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-67458934195941514022010-01-18T19:17:00.666-08:002010-01-18T19:17:00.666-08:00साथी रस्तोगी जी,
आपने लिखा कि समय बाज़ार का है, तो...साथी रस्तोगी जी,<br />आपने लिखा कि समय बाज़ार का है, तो क्या आप यह कह रहे कि साहित्यकारों को बाज़ार का प्रशस्तिगान शुरू कर देना चाहिए. किसी और का उदाहरण क्या दूँ, आप अपनी ही कविताएँ फिर से पढे, क्या वे बाजार का प्रशस्तिगान कर रही है. यदि नहीं, तो फिर आपकों वही करना चाहिए.<br />किशोर जी के प्रस्ताव पर आपने ध्यान नहीं दिया. यदि सैमसुंग को साहित्य से इतना ही प्रेम है, तो नोबेल पुरस्कार की तरह एक ट्रस्ट बनाकर साहित्यकारों को पुरस्कृत कर दें.<br />लेकिन मामला इतना ही नहीं है. साहित्य अकादमी साहित्यकारों, लेखकों का मंच है. यह संस्था पहले से ही अलोकतांत्रिक है, और इन नई परिस्थितियों में और ज्यादा क्रूर, अमानवीय संस्था में तब्दील हो जाएगी. क्या आप कल्पना कर पाते हैं कि आप जैसों लेखकों को कभी यह संस्था भविष्य में प्रतिनिधित्व दे पाएगी, यदि नहीं फिर इस तरह के विचारों का क्या मतलब.<br />इसके अलावा, आप जिन लेखकों की बात कह रहे हैं, हो सकता है उनके बच्चे अमरीका, ब्रिटेन पढने जाते हो, लेकिन वह कितने हैं, और वह इस पूरे मामले में कितना विरोध कर रहे हैं. यहाँ तो बहुसंख्यक लोग इस तरह के हैं कि वह रोज सुबह झोला लेकर निकलते हैं कि शाम को घर में आटा, चावल लाना है. और साथी मुझे तो नफ़रत तो इस पूँजीवादी व्यवस्था से है, तो क्या सलाह देंगे- आत्महत्या कर लूँ?jeetendraguptahttps://www.blogger.com/profile/05921296824700341131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-27029773343933109272010-01-13T23:16:26.311-08:002010-01-13T23:16:26.311-08:00गिरिराजजी,
यह समय बाजार का है। बाजार के संग-साथ नह...गिरिराजजी,<br />यह समय बाजार का है। बाजार के संग-साथ नहीं चलेंगे तो पिछड़ जाएंगे। अगर सैमसंग कंपनी साहित्य अकादमी के साथ मिलकर कोई पुरस्कार दे रही है, तो उसमें ऐतराज क्यों और किसलिए होना चाहिए? आप लोगों ने जरा-सी बात का बतंगड़ बनाकर रख दिया है। आज जब सैमसंग कंपनी हिंदी पर कोई पुरस्कार दे रही है, तो तकलिफ हो रही है, सबको वह विदेशी कंपनी नजर आ रही है लेकिन विदेशी-विदेशी गरियाने वाले जब भी मौका लगता है तब विदेश जाना हिंदी के नाम पर नहीं त्यागते। तमाम मंचों पर खड़े होकर अमेरिका को गरियाएंगे लेकिन अपना कोई बच्चा या रिश्तेदार वहां होगा तो उससे कभी यह नहीं कहेंगे कि अमेरिका छोड़कर भारत वापस लौट आओ। यही तुम्हारा मुल्क है। <br />अरे, आपका मन करता है तो पुरस्कार लें नहीं करता न लें। सैमसंग कंपनी ने किसी का हाथ पकड़कर यह नहीं कहा है कि आपको पुरस्कार लेना ही लेना है।<br />इस पुरस्कार पर जबसे ज्यादा बेचैन बड़े और महान प्रगतिशील ही हैं। उन्हें सैमसंग कंपनी सता रही है। बंधु, अगर सैमसंग कंपनी से इतनी ही नफरत है, तो उसकी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दें। तब जानूं कि आप कितने बड़े विदेशी-विरोधी हैं।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-63353500495338996002010-01-13T22:32:25.040-08:002010-01-13T22:32:25.040-08:00desi rang Dusre lekh ka hissa hai ise nirast samjh...desi rang Dusre lekh ka hissa hai ise nirast samjhen. asuvidha ke liye kshma. gkगिरिराज किशोरhttps://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-86945586593017994452010-01-13T22:32:21.299-08:002010-01-13T22:32:21.299-08:00desi rang Dusre lekh ka hissa hai ise nirast samjh...desi rang Dusre lekh ka hissa hai ise nirast samjhen. asuvidha ke liye kshma. gkगिरिराज किशोरhttps://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.com