tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post1331896603559783187..comments2023-09-10T06:32:54.439-07:00Comments on फिलहाल: गिरिराज किशोरhttp://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-2101878200221929672009-03-12T07:44:00.000-07:002009-03-12T07:44:00.000-07:00मंत्री जी का इस प्रकार चले जाना निन्दनीय है। लेकिन...मंत्री जी का इस प्रकार चले जाना निन्दनीय है। लेकिन हम ज्यादा दोषी हैं ; हमने ही तो अपने अधिकार का मजाकौड़ाते हुए उन्हें जिताया है।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-21802851372106606922009-03-07T07:52:00.000-08:002009-03-07T07:52:00.000-08:00आदरणीय गिरिराज जी,आपकी व्यथा बिलकुल जायज़ है. लेकि...आदरणीय गिरिराज जी,<BR/>आपकी व्यथा बिलकुल जायज़ है. लेकिन देखिये अब हिंदी लेखकों को इतना पैसा तो लेखन से मिलता नहीं, तो वे सोचते हैं कि कुछ पुरस्कारों, डिग्रियों, तमगों आदि से ही अपने बैठक खाने को सजा लें. अब उम्र के तीसरे और चौथे क्वार्टर की ओर अग्रसर हिंदी के मध्य वर्गीय लेखको पर कुछ तो परिवार का भी दबाव रहता ही होगा कि सारी उम्र तो फाकाकशी में गुजरी, बीमार हो, बीवी बीमार है, बिटिया की शादी करनी है, या पोती का स्कूल में प्रवेश कराना है, तो सारी खुद्दारी अभी क्या दिखानी, तो ले लो जो भी मिल रहा है.watchdoghttps://www.blogger.com/profile/14738719184726451033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-86537262248805078002009-03-04T05:35:00.000-08:002009-03-04T05:35:00.000-08:00गिरिराज जी! आपकी भावनाओं से सहमत हूँ.गिरिराज जी! आपकी भावनाओं से सहमत हूँ.www.dakbabu.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/04376997074873178876noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-694302845296230162009-03-02T11:41:00.000-08:002009-03-02T11:41:00.000-08:00मैं इस बात को दूसरी नज़र से देखता हूं. मंत्री, चाह...मैं इस बात को दूसरी नज़र से देखता हूं. मंत्री, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, नया हो या पुराना, आखिर हमारा चुना हुआ प्रतिनिधि ही तो है. हमने तो उसे खलनायक मान लिया है, कि उसके हाथों पुरस्कार लेकर जैसे लेखक कोई पाप कर रहा है.यह ह्जो जो होलियर देन दाऊ रवैया है हमें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. बेशक केदारनाथ जी बड़े कवि हैं, लेकिन या तो उन्हें इनाम स्वीकार ही नहीं करना चाहिए था, और अगर स्वीकार कर लिया तो फिर इससे क्या फर्क़ पड़ता है कि उसे कौन दे रहा है?इनाम है तो सरकारा का ही और उसे दे भी सरकार का प्रतिनिधि रहा है.दिक्कत क्या है?डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04367258649357240171noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-44251975553024297002009-03-02T08:26:00.000-08:002009-03-02T08:26:00.000-08:00कोई भी सम्मान हो, वह सम्मान लेने लायक होना चाहिए। ...कोई भी सम्मान हो, वह सम्मान लेने लायक होना चाहिए। यदि सम्मानपूर्वक यह नहीं मिल रहा है तो यह अपमान ही कहा जाएगा। क्या हमारे सम्मानित साहित्यकार बाजपेयीजी से सबक नहीं ले सकते जिन्होंने किसी नेता के सामने नतमस्तक होने की बजाय अपने ही स्थान पर बैठे रहे।!चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-18597266031305516282009-03-02T03:23:00.001-08:002009-03-02T03:23:00.001-08:00ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Ma...ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Maine UP Natak Academy ka Samman Lene se Inkar isliye kar diya tha char varsh tak ve likhjte rahe the ki PM denge . Antme maine mana kar diya. KI yey PM ko sammanit kARNA HAI YA Lekhak ko.गिरिराज किशोरhttps://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-78996360765149479402009-03-02T03:23:00.000-08:002009-03-02T03:23:00.000-08:00ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Ma...ASha ki jati hai ki hamare agraj pehal karenge. Maine UP Natak Academy ka Samman Lene se Inkar isliye kar diya tha char varsh tak ve likhjte rahe the ki PM denge . Antme maine mana kar diya. KI yey PM ko sammanit kARNA HAI YA Lekhak ko.गिरिराज किशोरhttps://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-8154687844817108212009-03-01T08:37:00.000-08:002009-03-01T08:37:00.000-08:00आदरणीय गिरिराजजी अब समय आ गया है कि साहित्यिक स...आदरणीय गिरिराजजी<BR/> अब समय आ गया है कि साहित्यिक समारोहों की गरिमा बचाये रखने के लिये लेखकों को ठोस पहल करनी चाहिये.एक व्यापक अभियान शुरु करना होगा.स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है.naveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-3736907170019304902009-03-01T08:24:00.000-08:002009-03-01T08:24:00.000-08:00तुम्हारी तिजोरियां पुरस्कारों से भरी पड़ी हैंजिनके ...<B>तुम्हारी तिजोरियां <BR/>पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं<BR/>जिनके भार से दबी जा रही हैं <BR/>तुम्हारी संवेदनायें</B><BR/>आलेख विचारणीय है। ऎसे सवाल पर गम्भीरता से और विस्तार से बात हो और सामूहिक तरह से सोचा और तय किया जाए तो शायद जाकर कोई स्थिति बने जब रचनाकार ऎसे मामलॊ पर पर कोई सकरात्मक रूख अपना पाएं वरना तो यह निजि नैतिकताओं का मामला ही हो जा रहा है और उसी के हिसाब से समय बे समय तर्क सुनने पढने को मिल जाते है। पुरस्कारों के सवाल पर भी पत्रिकाओं को एक बहस चलाते हुए विशेषांक निकालने चाहिए, जैसे अन्य विषयों पर निकलते हैं।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-18768863969602266262009-03-01T06:23:00.000-08:002009-03-01T06:23:00.000-08:00अनुचित का प्रतिकार यदि 'सास्चती पुत्र' ही नहीं कर...अनुचित का प्रतिकार यदि 'सास्चती पुत्र' ही नहीं करेंगे तो फिर किससे आशा, अपेक्षा की जाए?<BR/><BR/>निवदेन-एक बार फिर।<BR/>कृपया अपने ब्लाग से वर्उ वेरीफिकेशन की व्यवस्था हटा लें। <BR/>चाहें तो कमण्ट माडरेशन लगा दें।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-69503602378875100672009-03-01T05:08:00.000-08:002009-03-01T05:08:00.000-08:00इसलिए आपकी साहित्यिक बिरादरी ही जिम्मेदार है गिरिर...इसलिए आपकी साहित्यिक बिरादरी ही जिम्मेदार है गिरिराज जी ! काश वे आपकी पीडा को भी समझ पाते और आत्मान्न्वेषण करते !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-31247527835823249242009-03-01T05:04:00.000-08:002009-03-01T05:04:00.000-08:00स्थिति शोचनीय। मूल्यांकन सही,सटीक,चिन्तनीय व विचार...स्थिति शोचनीय। मूल्यांकन सही,सटीक,चिन्तनीय व विचारणीय। <BR/>शब्दावलीआयोग वाले डॊ.सत्यप्रकाश जी(वैज्ञानिक)ने भी इन्दिरा जी के हाथों सम्मान की घड़ी में उठना उचित नहीं समझा था। वे स्वयं मंच से उतर कर आई थीं।<BR/>मेरे विचार से इसके लिए उत्तरदायी मन्त्री या प्रशासन कम और हिन्दी के लेखक अधिक हैं। जिनके उदाहरण हम याद करते हैं, उनका व्यक्तित्व व चरित्र स्वयं में प्रणम्य उदाहरण होता था। मात्र लेखन द्वारा वे नामचीन न थे अपितु अपने निजी कारणों से भी महिमावान् थे। <BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>एक निजी बात -<BR/> जन्म : 8 जुलाई, 19937<BR/>ब्लॊग पर आपकी इस जन्मतिथि के वर्ष में एक ९ अतिरिक्त है। सम्पादित कर लें।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.com