tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post3539367505810550692..comments2023-09-10T06:32:54.439-07:00Comments on फिलहाल: गिरिराज किशोरhttp://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-35226447963359022552010-09-09T22:21:03.514-07:002010-09-09T22:21:03.514-07:00Dhanyavad, apna kam karte rahen yahi ek tarika hai...Dhanyavad, apna kam karte rahen yahi ek tarika hai jab apni bat aap keh sakte hain. ar jaghe apne hit mehtvapurn hote ja rahe hain.Duniya aurat ki ho ya mard ki anyaye anyaye hai viridh zaroori haiगिरिराज किशोरhttps://www.blogger.com/profile/03766307171336096893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-75726617569367922862010-09-09T06:01:23.828-07:002010-09-09T06:01:23.828-07:00आदरणीय गिरिराज जी ,
आप लगातार इस मुद्दे पर गंभीरता...आदरणीय गिरिराज जी ,<br />आप लगातार इस मुद्दे पर गंभीरता से लिख रहे हैं , यह बात आश्वस्त करती है . <br />किसी संस्थान की उन्नति की कसौटी क्या सिर्फ बिक्री में बढ़ोतरी होना है ?<br />सन 2005 में वरिष्ठ कवि विजयकुमार और बाद में वरिष्ठ लेखिका नासिरा शर्मा के आलेख और साक्षात्कार के साथ जिस तरह मजाक किया गया , जैसे युवा रचनाकारों के परिचय में चुटकुलेबाजी की गयी , वह भी बेहद अशोभनीय था . वही मजाहिया प्रवृत्ति अब सारी हदें लांघ गयी है . <br />और अब 2010 में सम्पादक महोदय हस्ताक्षर के लिए विजयकुमार जी को फोन करते हैं कि वे उनके पक्ष में अपना नाम दे दें . <br />पांच साल बाद उन्हें भूले बिसरों की सुध आयी . ज़ाहिर है , विजयकुमार ने अपना नाम देने से इनकार कर दिया .<br />मृदुला गर्ग , राजी सेठ , उषा किरण खान ने अपने नाम वापस लिए पर उनके नामों को सूची से हटाया नहीं गया . पूरे मसविदे की एक दो लाइनें पढ़ कर सुना दी गयीं और नामों की एक भ्रामक सूची अपने पक्ष में तैयार की क्योंकि अपनी कुर्सी का खतरा दिखाई दे रहा था . माफ़ी सिर्फ कुर्सी बचाने की माफ़ी थी . इस मामले ने तूल न पकड़ा होता तो संपादक अगली बार इससे भी ज्यादा घिनौनी हरकत करते . <br />इतने सालों तक ज्ञानोदय के संपादन में संपादक ने अपने सम्पादकीय में ( जो किसी भी पत्रिका की रीढ़ होता है ) सिर्फ अनुक्रम को दोहराने के अलावा कौन से महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहस की है ? अपने समाज और देश के किस मुद्दे पर कोई एक अविस्मरनीय विशेषांक दिया है ?<br />ज्ञानपीठ की गरिमा और साख को भुला कर जैन समूह ने बिक्री का साथ दिया और दे रहे हैं . ज्ञानपीठ के मालिकों को समझाना चाहिए कि विरोध करने वाले लेखक<br />ज्ञानपीठ संस्थान को सम्मान की निगाह से देखते हैं और उसे असंयमित और अमर्यादित जुमलों का मंच नहीं बनने देना चाहते .<br />ऐसी स्थिति में लेखकों को ज्ञानपीठ और वि वि वर्धा से सम्पूर्ण असहयोग करना चाहिए और आपकी तरह अपने कड़े रुख पर कायम रहना चाहिए .<br />ज्ञानपीठ के इतिहास में रवीन्द्र कालिया का यह काला अध्याय हमेशा दर्ज रहेगा . <br /><br />सुधा अरोड़ा .सुधा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/05794472945731689930noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-67083840529486712972010-09-09T04:41:04.824-07:002010-09-09T04:41:04.824-07:00पर..... कब तक हम लकीर पीटते रहेंगे??पर..... कब तक हम लकीर पीटते रहेंगे??चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4925185596568118507.post-58501268459579677092010-09-07T06:14:07.922-07:002010-09-07T06:14:07.922-07:00आपका क्षोभ जायज है।आपका क्षोभ जायज है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com